
लेखक ने अपने प्रतिपाद्य की अभिव्यक्ति के लिए जिन क्षेत्रों से पात्रों का चयन किया है उसमें प्रशासनिक वर्ग प्रमुख है, जैसे डिप्टी कलेक्टर जयेश, उनकी पत्नी तहसीलदार विमला ,एडिशनल कलेक्टर मैडम ,उनके पति, पास के जिले के कलेक्टर विजय प्रकाश, इसी जिले के कलेक्टर मिस्टर शाह, महिला बाल विकास अधिकारी मोहिनी विजय, महिला सरपंच ,थानेदार सचिन कुमार,मंत्रालय में सेक्रेटरी और वर्तमान में पंचायत विभाग के डायरेक्टर विपिन चंद्र ,जस्टिस पूर्णिमा चौरसिया आदि
समाज में व्याप्त अनैतिक परिवेश पर लेखक की गहरी आलोचनात्मक दृष्टि है, जो इन संवादों से स्पष्ट होती है-3.आपको डर लगता है मैडम? आप तो एडमिनिस्ट्रेटर है आपके पास तो लाठी है न्याय की, आप रक्षक हैं पहरेदार हैं समाज के माली हैं, आदि-आदि
1.समाज के रक्षक बनने वाले अफसर,,,,,, लार टपकाते भक्षक बनते देर नहीं लगती ,,,,पृष्ठ 72
2.पता नहीं कैसा समय आ गया है सब एक जैसे हो गए हैं पब्लिक हो या अफसर, रक्षक हो या भक्षक ,सब स्त्री को खुले बगीचे का फल समझ खा जाना चाहते हैं। समाज की मानसिकता को क्या हो गया है? ,,,,,,,पेज 74
इस उपन्यास की कथा का प्रारंभ ही स्वप्न शीर्षक से होता है जिसमें डिप्टी कलेक्टर जयेश महिला बाल विकास अधिकारी मोहिनी विजय द्वारा लगाए गए दैहिक शोषण के आरोप के कारण यहां-वहां भागते फिर रहे हैं। दूसरी तरफ कलेक्टर विजय प्रकाश जिनकी पत्नी एडिशनल कलेक्टर हैं, उनके द्वारा एक महिला सरपंच के साथ उसे किन्हीं आरोपों से बचाने के बदले उसके साथ की गई की गई दैहिक अनाचार का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है।यह सेकंड सैटरडे के सन्नाटे में रोमांस नामक शीर्षक से चतुर्थ कथा भाग में है।इसी प्रकार मंत्री जी, पार्षद जयलाल मेहता, शहर के खानदानी रईस धनचंद, शॉपिंग मॉल के मालिक सबसे संपन्न शहरी परमेश्वर बजाज, कॉलेज छात्र संघ में सक्रिय उनके बेटे विनय,देवांग, कमल आदि भी हैं।
कॉलेज से जुड़े परिवेश के चित्रण में कविता और विनय की प्रेम कहानी, ग्रामीण परिवेश से आई तितली ज्योति की कथा और इन सब से जुड़ा बहुत कुछ “शहर के भंवरे” नामक कथा भाग में वर्णित है। कविता को उसका बॉयफ्रेंड विनय गर्भवती कर देता है ।कमल अंशु के साथ बलात्कार करने वाले लड़कों में मुख्य अभियुक्त है। खटकने वाले ब्यौरे के साथ यह “रात के सन्नाटे में ” नामक कथा भाग में वर्णित है। सभ्यता का कचरा छठ कथा भाग भी ऐसे ही कथाओं को उजागर करता है। नारी अंगों का त्यौहार उप शीर्षक वाला सातवां कथा भाग पत्रकार दिगंबर के बेडरूम में सजाकर रखे गए वस्त्रहीन स्त्री पुतलों की कथा प्रस्तुति है।
स्त्री शोषण की अनैतिकता की कथा के साथ ही साथ समाज में अधिकारी वर्ग द्वारा आर्थिक शोषण,रिश्वत भ्रष्टाचार से अपनी सात पीढ़ियों के लिए धन संग्रह की बेईमान प्रवृत्तियां का भी पर्दाफाश किया गया है।
पंचायत विभाग के डायरेक्टर विपिन चंद्र के बंगले के दोनों बेडरूम के चारों पलंग नोटों से भरे हुए हैं । अन्य शहरों में भी उनके बंगलों में अकूत संपत्ति जमा है। इडी विभाग की कार्यवाई में यह सब संपत्ति जप्त की जाती है । इसी प्रकार कलेक्टर शाह के यहां भी इडी और पुलिस की कार्रवाई आर्थिक भ्रष्टाचार के संदर्भ में होती है। भ्रष्ट कलेक्टर शाह और मंत्री जी के अरबों रुपए के घोटाले का भंडाफोड़ आदि इसमें है।
स्त्री विमर्श इस उपन्यास का सकारात्मक पक्ष है इसकी मूल अभिव्यक्ति तो प्रोफेसर सोमेन की पत्नी जया के माध्यम से और तहसीलदार विमला
महिला वकील रजनी देवी, कविता,
तितली के रूप में चित्रित ज्योति आदि पात्रों के माध्यम से हुई है।
प्रेमचंद के महान उपन्यास गोदान की शहरी तितली मालती की भी चर्चा है और स्त्री पुरुष संबंधी बौद्धिक विवेचन में गोदान की हल्की सी छाया दृष्टिगोचर होती है। संसार में स्त्री पुरुष की क्या भूमिका है ? विवाह और प्रेम के विविध आयामों की सघन चर्चा कथा के केंद्र में है । अनेक स्त्रियों से संबंध रखने वाला शादीशुदा डॉक्टर खन्ना जिनकी पत्नी ने उनसे तंग आकर सुसाइड कर लिया था उसकी ओर आकर्षित लेखक मोहन की युवा पुत्री तनुजा का प्रसंग ,महिलाओं पर ही गर्भधारण और उससे जुड़ी हुई परेशानियों का भार क्यों ? पढ़ाई छुड़ाकर आगे पढ़ने की इच्छा रखने वाली लड़कियों को भी दबाव देकर शादी कर दिया जाना, औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन समझना और उनसे पुत्र पैदा करने की अपेक्षा करना, महिलाएं को पुरुषों की व्यवस्थाओं का भार क्यों ? आदि-आदि ज्वलंत एवं विचारणीय प्रश्नों की पड़ताल इसमें बिखरी पड़ी है।
यथा,,,,,प्रेम क्या है ?,,,,,,,,,,, प्रेम कब दैहिक शोषण में बदल जाता है
?,,,,,,,
“वास्तव में यह प्रेम नहीं है किसी लक्ष्य को पाने के लिए उद्देश्य पूर्ण प्रेम जाल है जिसे धीरे-धीरे फैलाया जाता है जब तक शिकार हाथ में ना आ जाए, तभी तो पहले का प्रेम बाद में शोषण बन जाता है,,,,,,,, ” पृष्ठ 131
प्रेम की व्याख्या नामक अंतिम और 14 वें कथा भाग में वर्णित यह निष्कर्ष बहुत कुछ सहमति योग्य है।
स्त्री को ही संसार में क्यों भुगतना पड़ता है? प्रेम में स्त्री ही क्यों ठगी जाती है? आदि- आदि नाना प्रकार के प्रश्न कथा को वजनदार बनाते हैं हालांकि उनकी गहराई विचारणीय है । पाठकों को सोचने के लिए बाध्य करना कथा कृति का धनात्मक पक्ष है।
एक सौ चौतीस पृष्ठों में अंकित कथा को चौदह उप शीर्षकों में विभाजित कर प्रस्तुत किया गया है ।कथा का कैनवास लघु उपन्यासों के अनुरूप है। कथा प्रवाह सम्यक है । कथा प्रस्तुति की शैली पर्याप्त आकर्षक है।
कथा शिल्प की दृष्टि से लेखक ने इसमें हिंदी के अनेक प्रसिद्ध रचनाकारों और उनकी साहित्यिक कृतियों के संदर्भ अंकित किए हैं। ये प्रतिपाद्य को सघन तो करते हैं पर हिंदी साहित्य से जिनका नाता नहीं है ऐसे पाठकों के लिए भाव बोध की दृष्टि से क्लिष्टता पैदा करते हैं।
उद्धरण प्रयोग के उदाहरण के लिए ,,,,हिंदी के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद के गोदान में तितली वाला प्रसंग का वर्णन है-
“ये तितलियां आज अनेक रूपों में हैं । ये बाय फ्रेंड जैसा हमदर्द और साथी ढूंढ कर उसका भरपूर उपयोग करती है। बात इससे बढ़ जाती है तो यह उनसे शादी भी रचा लेती है। इनके मां-बाप को इनके लिए वर तलाशने का कष्ट साध्य कार्य नहीं करना पड़ता”
पृष्ठ 46
सुप्रसिद्ध कवि अज्ञेय की काव्य पंक्ति “दुख सबको मांजता है ” का प्रयोग पृष्ठ 48 पर, हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला का प्रयोग प्रश्न 49 पर, महाकवि गोस्वामी तुलसीदास और उनकी पत्नी रत्ना का फटकारने वाला प्रसंग पृष्ट 95 पर, तुलसी की ही पंक्ति ” प्रिया बिन डरपत मन मोरा ” का प्रयोग पृष्ठ 109 पर आदि- आदि देखे जा सकते हैं।
“माली” की कथा भाषा सहज सरल और बोलचाल की है परंतु अनेक जगह पर ऐसा लगता है मानो सप्रयास तत्सम / संस्कृतनिष्ठ शब्द पिरो दिए गए हैं । जैसे- स्वच्छ सरिता बह रही थी, पृष्ठ 18
लहरों के उद्गम बिंदुओं की ओर देखा पृष्ठ 18
बड़ा सा ग्रंथ पड़ रही थी पृष्ठ 32,नयन नक्श पृष्ठ 46
गालियों का स्तवन पृष्ठ 50,
समंजित करना पड़ता है
पृष्ठ 126
कथा भाषा सामान्यतः मुहावरेदार, बोलचाल की भाषा के अनुरूप अंग्रेजी शब्द प्रयोग मिश्रित एवं प्रभावशाली है।
भाषा पर छत्तीसगढ़ी आंचलिकता के अनेक प्रभाव देखें जा सकते हैं जैसे ,,,मानक हिंदी में जो शब्द स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं या क्रिया स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होती है वे पुलिंग में या इसके उलट प्रयुक्त है,,,,,,,
बतौर कुछ उदाहरण,,,,,
यही वह जगह था ,,,, पृष्ठ 32
विमला को सांत्वना दिया
पृष्ठ 32
पुड़िया आपका है ,,, पृष्ठ 103
सोमेन को भी चाय दिया गया पृष्ठ 106
पुस्तक खोला तो वही,,,,,
पृष्ठ 109
आंगन में रखे मोटरसाइकिल को,,,,,, पृष्ठ 127
आदि आदि,,,,,,।
अलंकारिक भाषा प्रयोग की ओर लेखक का विशेष रुझान देखा जा सकता है, यथा,,,,,,,
“उसके होंठ किसी रसीले स्ट्रॉबेरी जैसे ही थे,,,,,,, पृष्ठ 14
+++++
“यह दुख केवल सौतिया डाह के जैसा था। यह दुख मल्टीनेशनल कंपनी के शेयरों में थोड़ी गिरावट से उनके सीईओ को प्राप्त होने वाले दुख के जैसा था।,,,,,,, ,,” पृष्ठ 52
अंशु बलात्कार के केस में जस्टिस पूर्णिमा चौरसिया द्वारा लीक से हटकर और मानवीय दृष्टि से महत्वपूर्ण दिया गया फैसला नई रचनात्मकता के प्रति आश्वस्त करता है और इसी के साथ ही डिप्टी कलेक्टर जयेश में भी कुछ नया और अच्छा करने का भाव गहराता है यह इस उपन्यास की उपलब्धि कहीं जा सकती है । यह जरूर है कि यौन प्रसंगों में सांकेकिकता से काम चलाया जाना चाहिए था ,,,,,।उपन्यासकार में गहन निरीक्षण तो है परंतु वैचारिक गहराई की ओर वे अग्रसर ही है,,,,, उपन्यासकार ने भूमिका के अंतर्गत लिखा है ,,,,,,
,”यह कथा माली रूपी प्रशासकों का है और प्रशासन के साथ बगिया रूपी जीवन का भी है, इसलिए आलोचक इसके साहित्य होने या ना होने पर तर्क , कुतर्क कर सकते हैं।”
पता नहीं क्या सोचकर उन्होंने यह लिखा है
पर उपन्यास लेखन के क्षेत्र में उनके इस प्रथम प्रयास को कुल मिलाकर स्वागत योग्य अवश्य कहा जा सकता है।



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